Smriti Irani Birthday: स्मृति ईरानी के जन्मदिन पर एकता कपूर ने साझा की अनमोल यादें, दिलाई 25 साल पहले की याद!

एकता कपूर ने अपनी करीबी दोस्त और पूर्व 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' स्टार स्मृति ईरानी को उनके 49वें जन्मदिन पर भावभीनी शुभकामनाएं दीं।

Shilpi Jaiswal

प्रसिद्ध टेलीविजन और फिल्म निर्माता एकता कपूर ने अपनी करीबी दोस्त और पूर्व ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ स्टार स्मृति ईरानी को उनके 49वें जन्मदिन पर भावभीनी शुभकामनाएं दीं। एकता ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो मोंटाज शेयर किया, जिसमें स्मृति और उनके बेटे रवि के साथ बिताए गए पलों को याद करते हुए उनके 25 साल के रिश्ते की सराहना की।

एकता ने लिखा, “जीवन के हर चरण में तुम्हें जानने के इतने साल हो गए हैं। इस साल ‘क्योंकि’ के 25 साल पूरे हो रहे हैं और मैंने तुम्हें एक ऐसी ताकत के रूप में विकसित होते देखा है, जिसका सम्मान किया जाना चाहिए- एक चमकता सितारा। जन्मदिन मुबारक हो, मेरे दोस्त, मेरी पसंदीदा मीम-शेयरर, रवि की मासी और कई लोगों के लिए, भारत की तुलसी।”

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एकता और स्मृति की दोस्ती

यह प्यार भरा मैसेज एकता और स्मृति की दोस्ती और उनके साझा किये गए अनुभवों का प्रतीक है, कि ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ का निर्माण एकता और उनकी माँ शोभा कपूर ने बालाजी टेलीफिल्म्स के बैनर तले किया था। यह शो 3 जुलाई 2000 से लेकर 6 नवंबर 2008 तक स्टार प्लस पर प्रसारित हुआ, और इसने भारतीय टेलीविज़न के इतिहास पर गहरी छाप छोड़ी।

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फिल्मों और सीरीज का मेल

एकता कपूर ने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री की कमी पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने इंस्टाग्राम स्टोरीज़ पर लिखा कि भारतीय कंटेंट क्रिएटर्स को अक्सर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा प्राप्त करने वाली फिल्मों और सीरीज के मानकों से मेल नहीं खाने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ता है। उनका कहना था कि यह केवल फिल्म निर्माताओं की गलती नहीं है, बल्कि दर्शकों की पसंद भी इस मुद्दे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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फिल्मों का अच्छा प्रदर्शन दर्शकों की भी जिम्मेदारी

एकता ने कहा कि समीक्षकों द्वारा सराही गई फिल्में जैसे ‘सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव’ और ‘द बकिंघम मर्डर्स’ बॉक्स ऑफिस पर सफलता नहीं प्राप्त कर पाईं। उन्होंने यह तर्क दिया कि यदि ये फिल्में अच्छा प्रदर्शन नहीं करतीं, तो इसके लिए दर्शक भी जिम्मेदार हैं। एकता ने कहा, “जब इन फिल्मों का सिनेमाघरों में अच्छा प्रदर्शन नहीं होता, तो क्या हम असली दोषियों-दर्शकों को स्वीकार कर सकते हैं?” उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय दर्शकों का स्वाद अभी भी विकसित हो रहा है और कंटेंट की गुणवत्ता का सही मूल्यांकन करना एक लंबी प्रक्रिया हो सकती है।

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