HAL Russia Deal: भारत-रूस संबंध और स्वदेशी एविएशन उद्योग के लिए बड़ा कदम उठाया गया है। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने रूस की सरकारी कंपनी यूनाइटेड एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन (UAC) के साथ सुखोई सुपरजेट (SJ-100) यात्री विमान भारत में बनाने का ऐतिहासिक समझौता किया है। इस एग्रीमेंट पर मंगलवार (28 अक्टूबर, 2025) को मॉस्को में HAL के सीएमडी डीके सुनील की मौजूदगी में हस्ताक्षर किए गए।
छोटे और मध्यम दूरी की उड़ानों के लिए गेम चेंजर
HAL ने बताया कि एसजे-100 विमानों का उपयोग उड़ान स्कीम के तहत छोटी दूरी की कनेक्टिविटी के लिए किया जाएगा। हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि कितने विमान भारत में बनाए जाएंगे और उत्पादन कब से शुरू होगा। लेकिन HAL के मुताबिक, केवल उड़ान स्कीम के लिए देश में लगभग 200 विमानों की जरूरत है। वहीं, हिंद महासागर क्षेत्र के पर्यटन स्थलों जैसे श्रीलंका और मालदीव को जोड़कर इस संख्या में 350 अतिरिक्त विमान की आवश्यकता होगी।
सिविल एयरक्राफ्ट के क्षेत्र में भारत-रूस का पहला समझौता
एसजे-100 दो इंजन वाला विमान है और इसे रूस की UAC कंपनी बनाती है। रूस में इस प्रकार के लगभग 200 विमान 16 कमर्शियल एयरलाइंस के घरेलू उड़ानों में उपयोग किए जाते हैं। HAL का कहना है कि कम दूरी की उड़ानों के लिए यह विमान गृहित और प्रभावशाली विकल्प साबित होगा।
यह समझौता HAL और UAC के बीच भरोसे का नतीजा है। HAL ने पहले भारतीय वायुसेना के लिए रूस से लाइसेंस के तहत 250 सुखोई लड़ाकू विमान और 600 मिग-21 जेट का निर्माण किया है, लेकिन सिविल एयरक्राफ्ट के लिए यह पहला करार है।
नागरिक उड्डयन क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत की दिशा
HAL फिलहाल लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) तेजस, लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर (LCH) प्रचंड, एडवांस लाइट हेलिकॉप्टर (ALH) ध्रुव और HTT ट्रेनर एयरक्राफ्ट का निर्माण करती है। ये सभी सैन्य विमान हैं। हालांकि, 1961 में HAL ने एवरो (AVRO HS-748) यात्री विमान का निर्माण भी किया था, जो 1988 में बंद हो गया।
HAL के अनुसार, एसजे-100 का निर्माण भारतीय विमानन उद्योग के लिए एक नया अध्याय है। यह कदम नागरिक उड्डयन क्षेत्र में ‘आत्मनिर्भर भारत’ के सपने को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे निजी क्षेत्र को मजबूती मिलेगी और विमानन उद्योग में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
भविष्य की संभावनाएँ
एसजे-100 विमान भारत के छोटे और मध्यम मार्गों पर उड़ानों की क्षमता बढ़ाएगा और देश के विमानन नेटवर्क को मजबूत करेगा। इसके निर्माण से भारत को उच्च तकनीक वाले सिविल एयरक्राफ्ट उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल होगी और विदेशी विमानों पर निर्भरता कम होगी।
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