Supreme Court India: सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बीआर गवई ने मंगलवार को बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि 11 अगस्त 2025 से उनकी अदालत में सीनियर वकील अब अर्जेंट सुनवाई के लिए मौखिक अनुरोध नहीं कर सकेंगे। हालांकि जूनियर वकीलों को इस नियम से छूट दी गई है।
CJI बोले- मेरी अदालत में सख्ती से होगा पालन
CJI गवई ने स्पष्ट किया कि कम से कम उनकी अदालत में यह नियम सख्ती से लागू किया जाएगा। उन्होंने अन्य जजों से भी आग्रह किया कि वे इस व्यवस्था को अपनाएं, ताकि पहले से तय मामलों की सुनवाई बाधित न हो। सामान्यत: सुप्रीम कोर्ट में कार्यवाही शुरू होते ही वकील जजों के समक्ष अर्जेंसी का हवाला देकर तत्काल सुनवाई की मांग करते हैं। इससे पहले से लिस्टेड मामले पीछे छूट जाते हैं, जिससे न्याय प्रक्रिया प्रभावित होती है।
CJI गवई ने फिर शुरू की थी पुरानी परंपरा
गौरतलब है कि CJI बनने के बाद 14 मई 2025 को जस्टिस गवई ने वकीलों को मौखिक रूप से अर्जेंसी बताने की अनुमति दी थी। जबकि उनके पूर्ववर्ती, जस्टिस संजीव खन्ना ने इस प्रथा को समाप्त कर दिया था। खन्ना के कार्यकाल में अर्जेंसी की जानकारी ईमेल या लिखित रूप में ही दी जाती थी। नए नियम के तहत केवल सीनियर वकीलों को मौखिक अर्जेंसी याचिका देने से रोका गया है, जबकि जूनियर वकीलों को यह छूट दी गई है। CJI का मानना है कि इससे जूनियर वकीलों को प्रतिनिधित्व का अधिक अवसर मिलेगा और कोर्ट की कार्यप्रणाली में अनुशासन भी बना रहेगा।
CJI गवई का कानूनी सफर
जस्टिस बीआर गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ। उन्होंने 1985 में अपने कानूनी करियर की शुरुआत की। शुरुआत में उन्होंने पूर्व एडवोकेट जनरल और हाईकोर्ट जज स्वर्गीय राजा एस. भोंसले के साथ काम किया।
बॉम्बे हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक का सफर
1987 में उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट में स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस शुरू की। 1992 से 1993 तक वे नागपुर बेंच में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त पब्लिक प्रॉसीक्यूटर रहे। 14 नवंबर 2003 को वे बॉम्बे हाईकोर्ट के एडिशनल जज बने और 12 नवंबर 2005 को परमानेंट जज के रूप में नियुक्त हुए। CJI गवई के इस कदम को न्यायिक अनुशासन और पारदर्शिता की दिशा में एक अहम पहल माना जा रहा है। इससे न केवल कोर्ट की कार्यवाही अधिक व्यवस्थित होगी, बल्कि छोटे व नए वकीलों को भी न्यायिक प्रक्रिया में भागीदारी का बड़ा मौका मिलेगा।
