Supreme Court News:सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम से जुड़ी एक महत्वपूर्ण याचिका पर सुनवाई करते हुए यह स्पष्ट किया है कि यदि कोई हिंदू विधवा महिला निसंतान होती है और उसकी मृत्यु हो जाती है, तो उसकी संपत्ति का अधिकार ससुराल पक्ष को प्राप्त होगा, न कि मायके पक्ष को।कोर्ट ने कहा कि विवाह के बाद महिला का गोत्र बदल जाना एक पुरातन परंपरा है, जो हजारों वर्षों से हिंदू समाज में प्रचलित है, और यह परंपरा आज भी हिंदू विवाह प्रणाली का अभिन्न हिस्सा है।
गोत्र परिवर्तन की परंपरा को तोड़ने से किया इनकार
इस मामले में न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना, जो सुप्रीम कोर्ट की एकमात्र महिला जज हैं, ने कहा कि हिंदू विवाह एक धार्मिक अनुष्ठान है, जिसमें कन्यादान की परंपरा के तहत महिला को उसके पिता के गोत्र से हटाकर उसके पति के गोत्र में सम्मिलित किया जाता है। यह गोत्र परिवर्तन सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि सामाजिक और धार्मिक रूप से पूर्ण परिवर्तन माना जाता है।
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उत्तराधिकार का आधार बना गोत्र और पारिवारिक संबंध
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब कोई महिला विवाह करती है और अपने पति के परिवार में सम्मिलित हो जाती है, तो उसकी वैयक्तिक और सामाजिक पहचान भी उस परिवार से जुड़ जाती है। ऐसे में, यदि वह महिला निःसंतान रहती है और उसकी मृत्यु हो जाती है, तो उसकी संपत्ति पर पहला अधिकार ससुराल पक्ष का ही होगा।कोर्ट ने यह फैसला हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 के अंतर्गत दिया, जिसमें यह बताया गया है कि विवाहित महिला की संपत्ति की उत्तराधिकार प्रक्रिया में पति के उत्तराधिकारी पहले आते हैं।
क्या है मामला?
यह मामला एक ऐसी हिंदू महिला की मृत्यु से जुड़ा था, जो निःसंतान विधवा थी। उसकी मृत्यु के बाद उसके मायके पक्ष और ससुराल पक्ष में संपत्ति को लेकर कानूनी विवाद उत्पन्न हो गया। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां कोर्ट को यह तय करना था कि महिला की संपत्ति पर किसका कानूनी हक बनता है।
परंपरा और कानून का संतुलन जरूरी
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि कोर्ट यह भली-भांति समझता है कि समाज में समानता और अधिकारों को लेकर बदलाव की जरूरत है, लेकिन कुछ परंपराएं ऐसी हैं जो सामाजिक ढांचे का हिस्सा हैं और उन्हें पूरी तरह से तोड़ना न्यायसंगत नहीं होगा।उन्होंने यह भी कहा कि समय के साथ समाज में बदलाव संभव है, लेकिन फिलहाल विवाहित महिला का गोत्र परिवर्तन, और उसका पति के परिवार से उत्तराधिकार संबंध, दोनों ही कानूनी और सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य हैं।
