Banke Bihari Corridor: सुप्रीम कोर्ट ने बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर परियोजना और इससे संबंधित न्यास समिति के संचालन पर अस्थायी रोक लगा दी है। शुक्रवार को हुई सुनवाई में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बांके बिहारी मंदिर न्यास अध्यादेश, 2025 के तहत बनाई गई समिति को तत्काल प्रभाव से स्थगित किया जा रहा है। इस अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को अब इलाहाबाद हाईकोर्ट को ट्रांसफर किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट का संतुलित कदम
जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि जब तक हाईकोर्ट इस मामले पर निर्णय नहीं ले लेता, मंदिर प्रबंधन के लिए एक नई अंतरिम समिति का गठन किया जाएगा। यह समिति हाईकोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में काम करेगी, जिसमें जिलाधिकारी, सरकारी अधिकारी और गोस्वामी समाज के प्रतिनिधि शामिल होंगे। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मंदिर समिति और याचिकाकर्ता पक्ष से तीखे सवाल पूछे। कोर्ट ने कहा, “मंदिर भले ही निजी हो, लेकिन देवता पूरे समाज के हैं। लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं। ऐसे में मंदिर का फंड श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा पर खर्च क्यों नहीं किया जा सकता? आप क्यों चाहते हैं कि सारा फंड सिर्फ आपके ही नियंत्रण में रहे?”
याचिकाकर्ता का विरोध और सरकार की सफाई
याचिकाकर्ता के वकील श्याम दीवान ने 15 मई को दिए गए कोर्ट के आदेश पर सवाल उठाते हुए कहा कि मंदिर फंड का उपयोग कॉरिडोर निर्माण में करना उचित नहीं है, खासकर जब याचिकाकर्ता को सुने बिना आदेश जारी किया गया। उन्होंने कहा, “मंदिर का प्रबंधन परंपरागत गोस्वामियों के हाथ में रहा है। अध्यादेश के जरिए उन्हें बाहर कर दिया गया है। विकास सरकार की जिम्मेदारी है, उसे अपने संसाधनों से करना चाहिए।”वहीं, राज्य सरकार की ओर से वकील ने कहा कि मंदिर पर कब्जा या फंड हड़पने की कोई मंशा नहीं है। सरकार केवल भीड़ प्रबंधन और सुविधाओं के उन्नयन के उद्देश्य से काम कर रही है।
आर्कियोलॉजिकल सर्वे की मदद से होगा विकास
कोर्ट ने यह भी कहा कि बांके बिहारी मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है, ऐसे में क्षेत्र के समग्र विकास के लिए आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) की भी मदद ली जानी चाहिए। कोर्ट ने धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की बात कहते हुए सुविधाओं के संतुलित विकास की आवश्यकता पर जोर दिया। सुनवाई के अंत में कोर्ट ने संकेत दिया कि 15 मई को जारी आदेश को, जिसमें राज्य सरकार को मंदिर फंड के उपयोग की अनुमति दी गई थी, वापस लिया जा सकता है। फिलहाल नई समिति के तहत मंदिर की व्यवस्थाएं सुचारु रूप से संचालित होंगी।
