Vijayadashami 2025: सनातन धर्म में कई सारे पर्व मनाए जाते हैं लेकिन दशहरा बेहद ही खास माना गया है, जो कि आश्विन माह में पड़ता है। इस साल दशहरा 2 अक्टूबर दिन गुरुवार यानी आज मनाया जा रहा है। इस दिन जगह जगह पर रावण दहन किया जाता है और बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव मनाया जाता है। वहीं उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में एक ऐसा अनोखा मंदिर है, जहां रावण की पूजा की जाती है। यह मंदिर कानपुर के शिवाला इलाके में स्थित है और खास बात यह है कि यह मंदिर साल में केवल एक बार, दशहरे के दिन ही खोला जाता है। तो ऐसे में हम आपको दशहरे के पावन दिन पर इस मंदिर के बारे में जानकारी प्रदान कर रहे हैं।
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क्यों होती है रावण की पूजा?

कानपुर का यह मंदिर इसलिए विशेष है क्योंकि यहां रावण को विद्वान, प्रकांड पंडित और शिवभक्त के रूप में पूजा जाता है, न कि राक्षस और बुराई के प्रतीक के रूप में। मान्यता है कि रावण न केवल भगवान शिव का परम भक्त था, बल्कि उसने वेदों और शास्त्रों का गहन अध्ययन भी किया था।
भक्तों का मानना है कि रावण की पूजा करने से मां छिन्नमस्तिका की पूजा भी पूर्ण मानी जाती है। मंदिर में मान्यता है कि मां छिन्नमस्तिका ने रावण को वरदान दिया था कि जब तक रावण की पूजा नहीं होगी, उनकी आराधना अधूरी रहेगी।
मंदिर का इतिहास और स्थापना
इस अनोखे मंदिर का निर्माण लगभग 100 साल पहले महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल द्वारा कराया गया था। मंदिर कैलाश मंदिर परिसर में स्थित है और इसमें रावण की एक लगभग पांच फीट ऊंची मूर्ति स्थापित है।
हालांकि, इस परिसर का इतिहास इससे भी पुराना है। जानकारी के अनुसार, सन् 1818 (लगभग 206 साल पहले) एक राजा द्वारा मां छिन्नमस्तिका का मंदिर बनवाया गया था। इसी मंदिर में रावण को देवी के प्रहरी के रूप में स्थापित किया गया था।
पूजा की विधि और अनोखी परंपरा
हर साल दशहरे के दिन, इस मंदिर में सुबह 9 बजे मंदिर के पट खोले जाते हैं और शाम को एक वर्ष के लिए बंद कर दिए जाते हैं। इस दौरान रावण की विशेष पूजा की जाती है। भक्त सरसों के तेल के दीपक, पीले फूल और धूप-अगरबत्ती चढ़ाकर रावण की आरती करते हैं।
पूजन के बाद भक्त मन्नतें मांगते हैं, और मानते हैं कि रावण की कृपा से उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह परंपरा न केवल कानपुर, बल्कि उत्तर भारत के अन्य किसी भी क्षेत्र में नहीं पाई जाती, जिससे यह मंदिर अद्वितीय बन जाता है।
सिर्फ एक दिन खुलता है मंदिर

यह मंदिर वर्ष भर बंद रहता है और केवल विजयादशमी के दिन ही पूजा के लिए खोला जाता है। भक्त इस दिन का बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं और दूर-दूर से दर्शन के लिए पहुंचते हैं। यह मंदिर यह संदेश देता है कि हर चरित्र के कई पहलू होते हैं। रावण जहां एक ओर अधर्म और अहंकार का प्रतीक था, वहीं दूसरी ओर वह विद्या, भक्ति और शक्ति का भी परिचायक था।
कानपुर के इस रावण मंदिर की परंपरा यह दिखाती है कि भारतीय संस्कृति में विचारों की विविधता और चरित्रों की गहराई को समझने की परंपरा रही है। दशहरे जैसे पर्व पर रावण की पूजा एक विचारशील पहलू को उजागर करती है, जो आम लोगों के लिए एक नई दृष्टिकोण की झलक पेश करती है।
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Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां पौराणिक कथाओं,धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। खबर में दी जानकारी पर विश्वास व्यक्ति की अपनी सूझ-बूझ और विवेक पर निर्भर करता है। प्राइम टीवी इंडिया इस पर दावा नहीं करता है ना ही किसी बात पर सत्यता का प्रमाण देता है।
