Rainfall Roundup: उत्तराखंड में अक्टूबर महीने के मौसम ने चौंकाने वाले उतार-चढ़ाव दिखाए हैं। जहां महीने की शुरुआत में प्रदेश में सामान्य से दोगुनी बारिश दर्ज की गई, वहीं तीसरे सप्ताह में पूरे राज्य में एक भी बूंद बारिश नहीं हुई। मौसम विज्ञान केंद्र की रिपोर्ट के अनुसार, 1 से 21 अक्टूबर तक उत्तराखंड में औसतन 41.5 मिमी वर्षा दर्ज की गई, जो सामान्य 28.9 मिमी के मुकाबले 44 प्रतिशत अधिक है। यानी अक्टूबर के पहले पखवाड़े में ही राज्य ने मासिक औसत वर्षा का अधिकांश हिस्सा प्राप्त कर लिया था।
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तीसरे सप्ताह में शून्य वर्षा, मौसम शुष्क बना हुआ

दीपावली के बाद भी प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में ठंड का असर नहीं दिखा है। इसका मुख्य कारण है लगातार शुष्क बना हुआ मौसम और सामान्य से अधिक तापमान। मौसम विभाग ने अनुमान जताया है कि आने वाले दिनों में भी मौसम शुष्क बना रहेगा और बारिश की संभावना नहीं है। अक्टूबर के तीसरे सप्ताह में पूरे प्रदेश में वर्षा का स्तर शून्य रहा, जिससे सूखे जैसे हालात बन गए हैं।
जिलावार वर्षा का विश्लेषण
मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, कुछ जिलों में सामान्य से कई गुना अधिक वर्षा दर्ज की गई, जबकि कुछ क्षेत्रों में सामान्य से कम बारिश हुई। सबसे अधिक वर्षा रुद्रप्रयाग जिले में हुई, जहां 63.6 मिमी बारिश दर्ज की गई, जो सामान्य से 264 प्रतिशत अधिक रही। इसके अलावा:
बागेश्वर: 67.5 मिमी (243% अधिक)
चमोली: 52.7 मिमी (198% अधिक)
टिहरी गढ़वाल: 37.5 मिमी (80% अधिक)
हरिद्वार: 24.3 मिमी (62% अधिक)
अल्मोड़ा: 34.7 मिमी (76% अधिक)
देहरादून: 41.0 मिमी (21% अधिक)
ऊधम सिंह नगर: 54.3 मिमी (54% अधिक)
वहीं कुछ जिलों में सामान्य से कम वर्षा दर्ज की गई:
नैनीताल: 35.8 मिमी (-6%)
पिथौरागढ़: 42.4 मिमी (-7%)
उत्तरकाशी: 33.0 मिमी (सामान्य के बराबर)
प्रदेश का औसत वर्षा स्तर 41.5 मिमी रहा, जो सामान्य से 44 प्रतिशत अधिक है।
स्थानीय गतिविधियों का असर

मौसम विशेषज्ञों के अनुसार, अक्टूबर के शुरुआती दिनों में सक्रिय रहे पश्चिमी विक्षोभ और स्थानीय मौसमी गतिविधियों के कारण भारी वर्षा हुई थी। लेकिन इसके बाद मौसम ने करवट ली और तीसरे सप्ताह में पूरे प्रदेश में शुष्कता बनी रही।
उत्तराखंड में अक्टूबर का मौसम असंतुलित रहा है। जहां शुरुआत में भारी बारिश ने राहत दी, वहीं तीसरे सप्ताह में सूखे जैसे हालात ने चिंता बढ़ा दी है। आने वाले दिनों में भी मौसम शुष्क रहने की संभावना है, जिससे जल स्रोतों और कृषि पर असर पड़ सकता है। मौसम विभाग की निगरानी और स्थानीय प्रशासन की तैयारी इस स्थिति से निपटने में अहम भूमिका निभाएगी।
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