Chhath Puja 2025: गाजीपुर के इस घाट पर छठ पूजा की अनोखी परंपरा, बेदी की सुरक्षा के लिए स्थापित की जाती हैं लक्ष्मी-गणेश प्रतिमा

गाजीपुर के नवापुर गंगा घाट पर छठ पूजा से पहले व्रती महिलाएं या उनके परिजन बेदी बनाकर उस पर लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां स्थापित करते हैं। मान्यता है कि ये मूर्तियां बेदी की सुरक्षा करती हैं और आस्था का प्रतीक होती हैं।

Nivedita Kasaudhan
chhath puja
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Chhath Puja 2025: उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में छठ महापर्व की तैयारियां दिवाली के तुरंत बाद ही शुरू हो जाती हैं। खासकर गंगा घाटों पर व्रती महिलाएं और उनके परिजन छठ पूजा के लिए विशेष रूप से बेदी (पूजन स्थल) का निर्माण करते हैं। लेकिन गाजीपुर के नवापुरा गंगा घाट पर एक अनोखी परंपरा देखने को मिलती है, जो श्रद्धा और सुरक्षा की भावना का प्रतीक बन चुकी है।

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बेदी की सुरक्षा के लिए लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों की स्थापना

chhath puja
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यहां व्रती महिलाएं या उनके परिवार के सदस्य गंगा किनारे से मिट्टी निकालकर छठ पूजा से कई दिन पहले ही बेदी बनाते हैं। इन बेदियों की सुरक्षा को लेकर लोगों में विशेष चिंता रहती है, क्योंकि घाटों पर भीड़ अधिक होती है और आशंका बनी रहती है कि कोई अन्य व्यक्ति उनकी बेदी को तोड़कर वहां अपनी बेदी न बना ले या उस पर अपना नाम न लिख दे।

इस समस्या से बचने के लिए लोग दिवाली के दिन लक्ष्मी और गणेश की पूजा करने के बाद उनकी मूर्तियां घाट पर लाकर अपनी-अपनी बेदियों पर स्थापित कर देते हैं। उनका विश्वास है कि इन देवताओं की उपस्थिति से उनकी बेदी सुरक्षित रहेगी और कोई भी श्रद्धा के कारण इन मूर्तियों को नहीं हटाएगा।

आस्था और पहचान का प्रतीक बन चुकी है यह परंपरा

स्थानीय लोगों के अनुसार छठ पूजा में बेदी का विशेष महत्व होता है। व्रत की शुरुआत सबसे पहले बेदी की पूजा और दीपक जलाकर की जाती है। इसलिए बेदी की सुंदरता और पवित्रता बनाए रखना आवश्यक होता है। एक व्रती महिला बताती हैं कि इस घाट पर दूर-दूर से लोग आकर अपनी बेदी बनाते हैं और उस पर लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति रख देते हैं। इससे उन्हें यह पहचानने में आसानी होती है कि कौन-सी बेदी उनकी है, क्योंकि वे पूरे वर्ष उस मूर्ति की पूजा करते हैं और उसे पहचानते हैं।

मूर्तियों के साथ जुड़ी होती है भावनात्मक आस्था

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लोगों का मानना है कि मूर्तियों की स्थापना से न केवल बेदी की सुरक्षा होती है, बल्कि यह एक धार्मिक आस्था का भी प्रतीक है। छठ पूजा के दिन जब व्रती महिलाएं घाट पर पहुंचती हैं, तो वे अपनी बेदी को सुरक्षित पाकर संतोष और श्रद्धा के साथ पूजा कर पाती हैं। पूजा के बाद, वे इन मूर्तियों का विसर्जन भी करती हैं, जिससे यह परंपरा पूर्ण होती है।

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां पौराणिक कथाओं,धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। खबर में दी जानकारी पर विश्वास व्यक्ति की अपनी सूझ-बूझ और विवेक पर निर्भर करता है। प्राइम टीवी इंडिया इस पर दावा नहीं करता है ना ही किसी बात पर सत्यता का प्रमाण देता है।

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