Puri Rath wheels Parliament: पुरी रथ यात्रा के तीन प्रमुख रथों के पहिए अब संसद परिसर में स्थापित किए जाएंगे। यह ऐतिहासिक निर्णय श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन द्वारा शनिवार को पुष्टि किया गया। इस प्रस्ताव को हाल ही में लोकसभा स्पीकर ओम बिरला द्वारा स्वीकार किया गया है। ओडिशा की संस्कृति और विरासत को सम्मानित करने के लिए यह कदम उठाया गया है, जो संसद भवन में स्थायी रूप से दिखाई देगा।
पुरी दौरे पर ओम बिरला को मंदिर समिति ने दिया था प्रस्ताव
मंदिर समिति के अनुसार लोकसभा स्पीकर ओम बिरला हाल ही में पुरी दौरे पर गए थे, जहां श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन ने उन्हें यह विशेष प्रस्ताव दिया था। इस प्रस्ताव के तहत पुरी रथ यात्रा के तीन प्रमुख रथों के पहिए संसद भवन में स्थायी रूप से स्थापित किए जाएंगे। ओम बिरला ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया, जिसके बाद मंदिर प्रशासन ने इसकी पुष्टि की। यह कदम ओडिशा की सांस्कृतिक धरोहर को देश की राजधानी में प्रस्तुत करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है।
ओडिशा की संस्कृति का प्रतीक माना जाएगा
इन तीन रथों के पहिए भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र के रथों से निकाले जाएंगे। भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदीघोष’, देवी सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदलन’ और भगवान बलभद्र के रथ को ‘तालध्वज’ के नाम से जाना जाता है। इन रथों के पहिए दिल्ली भेजे जाएंगे, जहां उन्हें संसद परिसर में ओडिशा की समृद्ध संस्कृति और विरासत के स्थायी प्रतीक के रूप में स्थापित किया जाएगा। इस पहल से देशभर में ओडिशा की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को और अधिक सम्मान मिलेगा।
संसद परिसर में ओडिशा की संस्कृति
इन पहियों के संसद में स्थापित होने से ओडिशा की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर को एक स्थायी स्थान मिलेगा। यह कदम न केवल ओडिशा की धार्मिक परंपराओं को सम्मानित करेगा, बल्कि यह पूरे देश में ओडिशा की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को भी रेखांकित करेगा। इन रथों के पहिए संसद परिसर में स्थापित होने से भारतीय संस्कृति के समृद्ध इतिहास और परंपराओं की झलक मिलेगी।
ओडिशा में रथ यात्रा की धरोहर को लेकर खुशी की लहर
पुरी रथ यात्रा के पहियों की संसद परिसर में स्थापना को लेकर ओडिशा में खुशी का माहौल है। यह पहल न केवल ओडिशा के लिए गर्व की बात है, बल्कि देशभर में धार्मिक और सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देने के लिए भी एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। ओडिशा सरकार और जनता दोनों इस कदम का स्वागत कर रहे हैं और इसे अपनी संस्कृति का सम्मान माना जा रहा है। यह पहल भारतीय राजनीति और संस्कृति के संगम का प्रतीक बनकर उभरेगी। रथ यात्रा के पहिए संसद परिसर में स्थापित होने से ओडिशा की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को एक नई पहचान मिलेगी और इसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम बनेगा।
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