Donald Trump: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नाइजीरिया में ईसाई समुदाय के खिलाफ बढ़ती हिंसा को लेकर एक बार फिर वैश्विक स्तर पर चर्चा का विषय बना दिया है। ट्रंप ने चेतावनी दी है कि नाइजीरिया में ईसाई धर्म का अस्तित्व खतरे में है और इसके पीछे कट्टरपंथी इस्लामवादी संगठन जिम्मेदार हैं, जो ईसाइयों पर लगातार हमले कर रहे हैं। उनका कहना है कि यदि हालात पर तुरंत नियंत्रण नहीं पाया गया तो नाइजीरिया जल्द ही ईसाई बहुल देश से मुस्लिम बहुल देश बन सकता है।
नाइजीरिया में ईसाइयों पर बढ़ते हमले
ट्रंप के अनुसार, हाल के महीनों में नाइजीरिया में ईसाई समुदाय के खिलाफ सामूहिक हत्याएं, चर्चों पर हमले और जबरन धर्म परिवर्तन जैसी घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। उन्होंने कहा, “ईसाई समुदाय को नष्ट करने की साजिश चल रही है, और अमेरिका इसे चुपचाप नहीं देखेगा।”
निगरानी और रिपोर्ट का आदेश
इस गंभीर स्थिति को देखते हुए ट्रंप ने दो अमेरिकी सांसदों रिले मूर और टॉम कोल को नाइजीरिया की स्थिति की जांच और रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है। उन्होंने कहा कि सीनेट कमेटी के साथ मिलकर स्थिति का आकलन किया जाएगा और उसके आधार पर आगे की रणनीति तय की जाएगी। ट्रंप ने स्पष्ट किया कि अमेरिका किसी भी कीमत पर ईसाई धर्म और इसके अनुयायियों पर अत्याचार को बर्दाश्त नहीं करेगा।
ईसाई धर्म की रक्षा अमेरिका की प्राथमिकता
ट्रंप ने कहा, “हमारा धर्म खतरे में है। अगर जरूरत पड़ी तो हम कड़े कदम उठाएंगे, चाहे इसके लिए हमें कट्टरपंथी ताकतों या चरमपंथियों के खिलाफ ही क्यों न जाना पड़े। अमेरिका अपने धार्मिक मूल्यों की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करेगा।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि केवल नाइजीरिया ही नहीं, बल्कि कई अफ्रीकी और एशियाई देशों में ईसाइयों के साथ अत्याचार हो रहे हैं, जो वैश्विक स्तर पर धार्मिक स्वतंत्रता पर खतरे की घंटी है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और बहस
ट्रंप के इस बयान ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय में नई बहस शुरू कर दी है। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार यह कदम धार्मिक वोटबैंक को साधने की रणनीति है, जबकि अन्य इसे ईसाई समुदाय के प्रति वास्तविक चिंता मानते हैं। नाइजीरिया में लंबे समय से बोको हराम और फुलानी मिलिशिया जैसी इस्लामिक चरमपंथी संगठन ईसाई गांवों पर हमले कर रहे हैं, जिनमें हजारों लोग मारे जा चुके हैं।
ट्रंप का यह बयान ऐसे समय आया है जब नाइजीरिया समेत कई देशों में धार्मिक हिंसा चरम पर है। उनका स्पष्ट संदेश है “ईसाई धर्म के अस्तित्व की रक्षा के लिए अमेरिका हर संभव कदम उठाएगा।” वहीं, इस बयान से मुस्लिम समुदाय में नाराजगी देखने को मिली है और कई मानवाधिकार संगठन इसे धार्मिक ध्रुवीकरण बढ़ाने वाला कदम मान रहे हैं।
