Trump Visa Policy : अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की वीज़ा नीति एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार ट्रंप ने निशाना साधा है H-1B वीजा पर, जो भारतीय पेशेवरों और आईटी कंपनियों के लिए अमेरिका में काम करने का सबसे बड़ा जरिया है। ट्रंप द्वारा घोषित नए नियमों के तहत अब H-1B वीजा की लागत सीधे $1,00,000 (लगभग ₹88 लाख) कर दी गई है। इस फैसले से जहां भारतीयों का ‘अमेरिकन ड्रीम’ प्रभावित हो सकता है, वहीं TCS, Infosys, Wipro जैसी दिग्गज कंपनियों के मुनाफे पर भी असर पड़ सकता है।
कौन सी कंपनियां होंगी सबसे ज्यादा प्रभावित?
नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2025 में सबसे ज्यादा H-1B वीजा पाने वालों में टॉप पर है Amazon, जिसके 10,044 कर्मचारी इस वीजा का उपयोग कर रहे हैं। दूसरे नंबर पर है TCS, जिसके 5,505 कर्मचारी H-1B वीजा पर अमेरिका में काम कर रहे हैं। इसके बाद क्रमश: Microsoft (5,189), Meta (5,123), Apple (4,202), Google (4,181), Deloitte (2,353), Infosys (2,004), Wipro (1,523) और Tech Mahindra Americas (951) का स्थान है।
कंपनियों ने क्या कदम उठाए?
ट्रंप की नई नीति के बाद कई अमेरिकी टेक कंपनियों ने अपने विदेशी कर्मचारियों को सतर्क कर दिया है। Meta और Microsoft ने अपने वीजा धारकों को 24 घंटे के अंदर अमेरिका लौटने या नए आदेश तक देश छोड़ने से बचने की सलाह दी है।
ट्रंप का तर्क क्या है?
ट्रंप ने H-1B वीजा सिस्टम को ‘दुरुपयोग’ बताते हुए कहा कि यह अमेरिका के लोकल वर्कफोर्स के लिए नुकसानदायक है। उनका कहना है कि वर्ष 2000 से 2019 के बीच STEM क्षेत्रों (Science, Technology, Engineering, Math) में विदेशी कामगारों की संख्या 1.2 मिलियन से बढ़कर 2.5 मिलियन हो गई, जबकि इस सेक्टर में कुल नौकरियों में केवल 44.5% की वृद्धि हुई। कंप्यूटर और गणित के क्षेत्र में विदेशी कामगारों का हिस्सा 17.7% से बढ़कर 26.1% हो गया।
भारत को क्यों है चिंता?
H-1B वीजा भारतीय प्रोफेशनलों के लिए अमेरिकी जॉब मार्केट में प्रवेश का मुख्य रास्ता रहा है। लेकिन अब $1 लाख वीजा शुल्क से भारत की आईटी कंपनियों का अमेरिका में बिजनेस मॉडल प्रभावित होगा, क्योंकि वे कम लागत में कर्मचारियों को अमेरिका भेजकर प्रोजेक्ट्स पूरे करती रही हैं।
ट्रंप की यह ‘वीजा बम’ नीति न केवल भारतीय कंपनियों के लिए आर्थिक झटका है, बल्कि अमेरिका में काम करने की चाह रखने वाले हज़ारों भारतीय पेशेवरों के लिए भी एक बड़ा अवरोध बन सकती है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि कंपनियां इस झटके से कैसे निपटती हैं और क्या अमेरिकी प्रशासन इस नीति पर पुनर्विचार करता है।
