Vande Mataram Debate: संसद के शीतकालीन सत्र के छठे दिन लोकसभा में वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर विशेष चर्चा आयोजित की गई। इस बहस के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस, पर तीखे आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम को वह सम्मान नहीं मिला, जिसका वह हकदार था। उनके अनुसार, स्वतंत्र भारत में इसे बराबरी का दर्जा देने की बात तो हुई, लेकिन व्यवहार में इसे हमेशा हाशिए पर रखा गया।
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राजनाथ सिंह ने इतिहास को लेकर की चर्चा
राजनाथ सिंह ने वंते मातरम पर चर्चा के दौरान कहा, ‘वंदे मातरम् भारत के इतिहास, वर्तमान और भविष्य से जुड़ा हुआ है। वंदे मातरम् ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ संघर्ष कर रहे हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को अपार शक्ति दी। वंदे मातरम् वह गीत है जिसने सदियों की गुलामी के बाद हमारे देश को जगा दिया। इसने आधी सदी तक स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित किया और इसकी गूंज अंग्रेजी चैनलों के माध्यम से ब्रिटिश संसद तक भी पहुंची। वंदे मातरम् की ऐसी थी ताकत… अप्रैल 1906 में ब्रिटिश सरकार ने वंदे मातरम् नारे के सार्वजनिक जाप पर प्रतिबंध लगा दिया था। लोगों ने इस आदेश का खुलेआम उल्लंघन किया। इसी तरह उस्मानिया विश्वविद्यालय में भी वंदे मातरम् जपने पर रोक लगा दी गई थी। इस आदेश का विरोध करने पर एक छात्र श्री राम चंद्र को जेल भेज दिया गया था।’
वंदे मातरम का महत्व

आपको बता दें कि, राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि वंदे मातरम सिर्फ एक गीत नहीं, लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन की आत्मा रहा है। उन्होंने बताया कि अंग्रेजी शासन के दौरान यह गीत ब्रिटिश सरकार के लिए भय का कारण था, क्योंकि यह जनता में नई ऊर्जा और जागरूकता पैदा करता था। उनके अनुसार, वंदे मातरम ने देशभर में एकता और राष्ट्रभक्ति की भावना को मजबूत किया और यह केवल बंगाल तक सीमित नहीं रहा। विदेशों में बसे भारतीयों ने भी इसे गर्व के साथ गाया और इसे अपनी पहचान का हिस्सा बनाया।
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कांग्रेस पर आरोप
चर्चा के दौरान रक्षा मंत्री ने विपक्ष पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम एक पूर्ण रचना है, लेकिन कुछ राजनीतिक दलों ने इसे अपूर्ण बताने की कोशिश की। राजनाथ सिंह के अनुसार, कांग्रेस ने इस गीत को विभाजित करने और इसके महत्व को कम करने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों के पत्रों की शुरुआत अक्सर वंदे मातरम से होती थी, जो इस गीत की राष्ट्रीय भावना से जुड़ाव को दर्शाता है। उनके मुताबिक, वंदे मातरम देश की आत्मा और भावनाओं का प्रतीक है।
राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत को समान दर्जा देने का मुद्दा
राजनाथ सिंह ने अपने भाषण में यह भी कहा कि आज़ादी के बाद यह तय किया गया था कि राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ और राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ दोनों को समान सम्मान दिया जाएगा। लेकिन समय के साथ राष्ट्रगान को तो व्यापक मान्यता मिली, जबकि वंदे मातरम को एक “अतिरिक्त” गीत की तरह देखा जाने लगा। उन्होंने कहा कि यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है और वंदे मातरम को वह स्थान नहीं मिला, जिसकी वह पात्रता रखता है।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ पर हो रही यह चर्चा इस बात का अवसर है कि देश इस गीत के महत्व को फिर से समझे और इसे उचित सम्मान दे।

