Vande Mataram: मंगलवार सुबह 11 बजे राज्यसभा की कार्यवाही शुरू होते ही राष्ट्रगीत वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ पर विशेष चर्चा का आरंभ हुआ। इस चर्चा की शुरुआत केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने की। इससे पहले सोमवार को लोकसभा में भी इसी विषय पर विस्तृत विमर्श हुआ था। शाह ने कहा कि इस चर्चा का उद्देश्य है कि देश के किशोरों, युवाओं और आने वाली पीढ़ियों तक वंदे मातरम् के योगदान और इसके इतिहास की गूंज पहुंचे।
Vande Mataram: वंदे मातरम् पर चर्चा की प्रासंगिकता
गृह मंत्री ने कहा कि कुछ सदस्यों द्वारा पूछे गए सवाल कि इस विषय पर बहस की आवश्यकता क्यों है उचित नहीं हैं। उनके अनुसार वंदे मातरम् पर चर्चा की जरूरत उसके प्रति श्रद्धा, समर्पण और राष्ट्रीय कर्तव्य की भावना को सुदृढ़ करने के लिए सदैव रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह आवश्यकता स्वतंत्रता आंदोलन के समय भी थी और आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।
Vande Mataram: संसद में बहस और राजनीतिक आरोपों का उल्लेख
अमित शाह ने कहा कि उन्होंने देखा कि कांग्रेस के कुछ सदस्यों ने इस चर्चा को राजनीतिक हथकंडा या ध्यान भटकाने की कोशिश बताया। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए शाह ने कहा कि सरकार किसी भी मुद्दे पर चर्चा से पीछे नहीं हटती और न ही बहस से बचती है। उन्होंने कहा कि संसद का बहिष्कार करने की बजाय उसे चलने दिया जाए, तो सभी आवश्यक विषयों पर खुलकर विमर्श संभव है।
राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने वाला गीत
अमित शाह ने कहा कि वंदे मातरम् केवल साहित्यिक कृति नहीं बल्कि ऐसा गीत है जो मां भारती के प्रति भक्ति, कर्तव्य और समर्पण की भावना जगाता है। उनके अनुसार यदि कोई व्यक्ति यह समझ नहीं पा रहा कि इस समय वंदे मातरम् पर चर्चा क्यों आवश्यक है, तो उसे अपनी समझ का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए। यह गीत करोड़ों भारतीयों की भावनाओं से जुड़े एक अमर प्रतीक के रूप में आज भी उतना ही शक्तिशाली है।
स्वतंत्रता आंदोलन में वंदे मातरम् की भूमिका
गृह मंत्री ने बताया कि यद्यपि वंदे मातरम् की रचना बंगाल में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने की, पर इसका प्रभाव केवल बंगाल या भारत तक सीमित नहीं रहा। दुनिया भर में जहां भी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के समर्थक थे, उन्होंने इस गीत को प्रेरणा के रूप में अपनाया। सरहद पर वीर जवान जब प्राणों की आहुति देते हैं, तो अक्सर उनके होंठों पर यही उद्घोष होता है वंदे मातरम्।अमित शाह ने बताया कि 7 नवंबर 1875 को वंदे मातरम् पहली बार सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत किया गया था। प्रारंभ में इसे उच्च कोटि की साहित्यिक रचना माना गया, लेकिन समय के साथ यह देशभक्ति, त्याग और राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक बन गया। इसने स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूत आधार दिया और करोड़ों भारतीयों में स्वतंत्रता का जज्बा जगाया।
भारत के पुनर्जागरण का मंत्र
शाह ने कहा कि वंदे मातरम् वह नारा था जिसने देश को गुलामी की जंजीरों को तोड़ने की प्रेरणा दी। यह शहीदों के लिए अंतिम सांस तक शक्ति देने वाला मंत्र बना। उन्होंने महर्षि अरविंद का उल्लेख करते हुए कहा कि वंदे मातरम् भारत के पुनर्जन्म का मंत्र है, जिसने राष्ट्र की आत्मा को जागृत किया और एक नए भारत की कल्पना को दिशा दी।
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