UP Politics 2025 : उत्तर प्रदेश की राजनीति में दलित वोट बैंक हमेशा से निर्णायक भूमिका निभाता आया है। अब जब 2027 के विधानसभा चुनावों की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं, तो समाजवादी पार्टी (सपा) ने इस पर पकड़ मजबूत करने के लिए एक नया सियासी दांव चला है – ‘वोट चोरी’ के मुद्दे को लेकर दलितों को संगठित करने की रणनीति। पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के निर्देश पर सपा ने अपने फ्रंटल संगठन आंबेडकर वाहिनी को एक्टिव कर दिया है, जिसका मकसद है बसपा की कमजोर पकड़ का फायदा उठाकर दलित समुदाय में राजनीतिक सेंध लगाना।
“वोट बचाओ” बना सपा का नया नारा
राष्ट्रीय अध्यक्ष मिठाई लाल भारती ने बताया कि संगठन गांव-गांव चौपाल लगाकर दलितों को जागरूक कर रहा है। उन्होंने कहा,”हम बता रहे हैं कि कैसे हर चुनाव में उनका वोट चोरी हो जाता है। इस बार हर बूथ पर पहरा देना है, ताकि दलितों की आवाज न दबे।”गाजीपुर और चंदौली जैसे जिलों में रात गुजारकर अभियान चलाने का जिक्र करते हुए भारती ने कहा “हम घर-घर जा रहे हैं, संविधान और आरक्षण की रक्षा का संदेश देंगे और वोट चोरी को रोकेंगे।”
बीजेपी और बसपा पर सपा का दोहरा वार
सपा का यह अभियान बीजेपी पर सीधा हमला करता दिख रहा है। पार्टी नेताओं का आरोप है कि सत्तारूढ़ भाजपा चुनावी तंत्र का दुरुपयोग कर दलितों की राजनीतिक ताकत को कमजोर कर रही है। वहीं दूसरी ओर, बसपा की घटती साख ने सपा को एक नई राजनीतिक जमीन दे दी है। यही कारण है कि अब सपा PDAM मॉडल पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक— को और मजबूत करने में जुट गई है।
कांग्रेस से मिला संकेत
गौरतलब है कि कांग्रेस ने बिहार चुनाव में “वोट चोरी” का मुद्दा उठाकर विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश की थी। अब अखिलेश यादव उसी रणनीति को यूपी में उतारने की तैयारी में हैं। 2027 के चुनावी मैदान में ‘वोट चोरी’ सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि दलितों को संगठित करने का सपा का बड़ा चुनावी एजेंडा बन चुका है। अगर यह अभियान जमीनी स्तर तक प्रभावी साबित होता है, तो सपा यूपी की दलित राजनीति में नई ताकत बनकर उभर सकती है। अब देखना यह है कि यह रणनीति बीजेपी और बसपा की नींद उड़ाती है या नहीं इसका फैसला 2027 का जनादेश करेगा।
