Chhath Puja 2025: छठ पूजा को महापर्व भी कहा जाता है.इस पर्व का बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। दीवाली के अगले दिन से ही इस पर्व की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। यह त्योहार चार दिनों तक चलता है और इसकी शुरुआत नहाय-खाय से होती है। छठ व्रत बेहद कठिन माना जाता है, लेकिन इसे करने वाले को शुभ फल की प्राप्ति होती है।
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नहाय-खाय के साथ होगी छठ महापर्व की शुरुआत
बताते चले कि, इस वर्ष छठ महापर्व की शुरुआत 25 अक्टूबर, शनिवार को नहाय-खाय के साथ होगी। इस दिन महिलाएं नदी या जल स्रोत में स्नान करती हैं और सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं। यह दिन व्रती के लिए मानसिक व शारीरिक दृढ़ता प्रदान करता है, ताकि वे अगले तीन दिनों तक चलने वाले कठिन व्रत को सहजता से निभा सकें।
खरना: व्रत का आरंभ और भोग का विशेष महत्व
नहाय-खाय के अगले दिन 26 अक्टूबर, रविवार को खरना मनाया जाएगा। इस दिन शाम को रोटी, गुड़ की खीर और फल का भोग लगाया जाता है। व्रतधारी महिलाएं स्वयं प्रसाद ग्रहण करती हैं और फिर सभी को वितरित करती हैं। खरना के बाद निर्जला व्रत की शुरुआत होती है, जो उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद समाप्त होता है।
छठ पूजा: सूर्य को अर्घ्य देने की विधि
खरना के अगले दिन यानी 27 अक्टूबर, सोमवार को छठ पूजा का मुख्य आयोजन होगा। शाम को व्रती महिलाएं घाट पर जाकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देती हैं और छठी मईया की पूजा विधि-विधान से करती हैं। इस दिन विशेष रूप से छठी मईया के गीत गाए जाते हैं, और पूरे परिवार के साथ श्रद्धा पूर्वक पूजा की जाती है।
उदय होते सूर्य को अर्घ्य
छठ पूजा के अंतिम दिन 28 अक्टूबर, मंगलवार को सुबह व्रती महिलाएं नंगे पांव घाट पहुंचकर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देती हैं। इस दिन वे अपने परिवार की सुख-समृद्धि और संतान की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती हैं। इसी दिन 36 घंटे तक चलने वाला निर्जला व्रत पूर्ण होता है और महिलाओं का कठिन पर्व संपन्न होता है।
छठ पूजा में सूर्य देव और छठी मईया की भक्ति
छठ पूजा का मुख्य केंद्र सूर्य देवता और छठी मईया की आराधना होती है। यह व्रत शुद्धता, संयम और श्रद्धा का प्रतीक है। इस महापर्व में प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाती है और सूर्य देव की कृपा से जीवन में खुशहाली और समृद्धि की कामना की जाती है। इस प्रकार, छठ महापर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भी संदेश देता है। इस बार भी यह त्योहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा और श्रद्धालु अपनी परंपराओं का सम्मान करते हुए व्रत करेंगे।
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