US Trade Policy: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा विश्व व्यापार पर लगाए गए भारी टैरिफ के खिलाफ अब वैश्विक स्तर पर विरोध तेज हो गया है। BRICS और IBSA देशों ने अमेरिका की टैरिफ नीति पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि वे टैरिफ की धमकियों को बर्दाश्त नहीं करेंगे और इसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था के खिलाफ मानते हैं।
संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में उठा मुद्दा
संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) की साइडलाइन पर हुई BRICS और IBSA देशों की विदेश मंत्रियों की बैठक में यह मुद्दा छाया रहा। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के समकक्षों ने इस बैठक में हिस्सा लिया और ट्रंप प्रशासन की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के तहत लगाए गए एकतरफा टैरिफ पर चिंता व्यक्त की।
ट्रंप के टैरिफ का असर: भारत समेत 180 देश प्रभावित
डोनाल्ड ट्रंप ने अप्रैल 2025 में चीन, भारत, ब्राजील, अर्जेंटीना सहित लगभग 180 देशों के एक्सपोर्ट पर 10% से 50% तक टैरिफ लगा दिए। भारत पर ट्रंप प्रशासन ने रूस से तेल आयात करने की वजह से 25% की पेनल्टी टैरिफ सहित कुल 50% टैरिफ लगा दिया है। इससे भारत के ऑटोमोबाइल, फार्मा, कृषि और स्टील सेक्टर पर गहरा असर पड़ा है।
व्यापार घाटा और ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति की आड़
राष्ट्रपति ट्रंप का दावा है कि टैरिफ लगाने का मकसद अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करना और घरेलू उद्योगों को सुरक्षा देना है। उन्होंने कहा कि यह टैरिफ राष्ट्रीय सुरक्षा, मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा और विदेशी उत्पादों पर निर्भरता घटाने के लिए जरूरी है।
किन उत्पादों पर लगे हैं भारी टैरिफ?
स्टील और एल्युमीनियम पर: 25-50%, फार्मास्यूटिकल्स पर: 100%, ऑटोमोबाइल्स पर: 25%, फर्नीचर पर: 30%, किचन कैबिनेट और बाथरूम वैनिटी पर: 50%, कृषि उत्पादों पर: 25%, मेटल प्रोडक्ट्स (ब्राजील-अर्जेंटीना) पर: 20-30%।
BRICS और IBSA का कड़ा संदेश
BRICS और IBSA देशों ने अमेरिका को दो टूक शब्दों में कहा कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार में इस प्रकार की टैरिफ धमकियां विश्व अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकती हैं। उन्होंने कहा कि यह नीति विकासशील देशों के लिए अनुचित है और इससे ग्लोबल सप्लाई चेन पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ निर्णयों से वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता का माहौल बन गया है। BRICS और IBSA जैसे मंचों से अमेरिका को विरोध का सामना करना पड़ रहा है। आने वाले समय में यह मुद्दा विश्व व्यापार संगठन (WTO) और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी गंभीर बहस का विषय बन सकता है।
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