Women In Army: दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि आखिर क्यों महिलाओं को संयुक्त रक्षा सेवा (CDS) परीक्षा के माध्यम से भारतीय सैन्य अकादमी (IMA), नौसेना अकादमी (INA) और वायुसेना अकादमी (AFA) में प्रवेश नहीं दिया जा रहा है। कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी कर इस नीति को लेकर जवाब मांगा है। मुख्य न्यायाधीश देवेन्द्र कुमार उपाध्याय की अध्यक्षता वाली बेंच ने बुधवार को सुनवाई के दौरान कहा कि यह गंभीर मामला है और यह जानना जरूरी है कि महिलाओं को सेना में पूरी भागीदारी क्यों नहीं दी जा रही। याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई कि यह नीति महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला
याचिका वकील कुश कालरा ने दाखिल की है। उन्होंने तर्क दिया कि महिलाओं को CDS के जरिए IMA, INA और AFA में शामिल न करना संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 16 (सरकारी नौकरियों में समान अवसर) और अनुच्छेद 19(1)(g) (अपने पसंद के पेशे को चुनने का अधिकार) के खिलाफ है। याचिका में 2020 के उस ऐतिहासिक फैसले का ज़िक्र किया गया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महिला सैन्य अफसरों को पुरुषों के समान स्थायी कमीशन और कमांड पोस्टिंग का अधिकार मिलना चाहिए। साथ ही, 2021 में आए उस आदेश का भी जिक्र किया गया, जिसमें महिलाओं को NDA परीक्षा में शामिल होने की अनुमति मिली थी।
CDS में बाधा क्यों?
याचिका में सवाल उठाया गया कि जब महिलाएं अब सेना में कमांड और यहां तक कि कॉम्बैट रोल्स में भी आ रही हैं, तो उन्हें CDS परीक्षा के ज़रिए IMA, INA और AFA जैसे संस्थानों में प्रवेश से वंचित रखना पूरी तरह भेदभावपूर्ण है। याचिकाकर्ता ने इसे बिना किसी तार्किक या कानूनी आधार के लिया गया फैसला बताया है। वर्तमान नीति के तहत महिलाएं केवल ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी (OTA), चेन्नई से ही जुड़ सकती हैं, जहां उन्हें शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) दिया जाता है। इसमें सिर्फ 10 साल की सेवा मिलती है, जिसे अधिकतम 14 साल तक बढ़ाया जा सकता है। जबकि IMA, AFA और INA से पास होने वाले अफसरों को परमानेंट कमीशन मिलता है और उनका करियर लंबा होता है।
ट्रेनिंग में भी बड़ा अंतर
IMA, INA और AFA में लगभग 18 महीने की कठोर सैन्य ट्रेनिंग होती है, जबकि OTA में केवल 49 हफ्तों की ट्रेनिंग दी जाती है। ऐसे में महिलाओं को CDS के जरिए केवल OTA तक सीमित रखना, उन्हें कम अवसर देना और करियर की दृष्टि से कमजोर स्थिति में रखना साबित होता है। हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए केंद्र सरकार से विस्तार से जवाब मांगा है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि महिलाओं को सेना में समान अधिकार देने का मामला अब केवल सामाजिक नहीं, बल्कि संवैधानिक महत्व का विषय है। अगली सुनवाई नवंबर 2025 में होगी। दिल्ली हाईकोर्ट का यह कदम महिला अधिकारों और लैंगिक समानता की दिशा में एक अहम मोड़ साबित हो सकता है। अगर कोर्ट महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाता है, तो CDS परीक्षा और सेना में भर्ती की व्यवस्था में बड़ा बदलाव आ सकता है।
