गुजरात दंगे के पीड़ितों के लिए लंबे समय से संघर्ष करती रही जानी-मानी वकील ज़किया जाफ़री (Zakia Jafri) का 86 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनका निधन भारतीय न्यायपालिका के लिए एक गहरी क्षति है, क्योंकि वे न केवल दंगे के पीड़ितों के लिए एक आवाज बनकर सामने आईं, बल्कि उन्होंने न्याय के लिए वर्षों तक कड़ी मेहनत की।
न्याय और ऐतिहासिक कानूनी लड़ाई लड़ी

ज़किया जाफ़री (Zakia Jafri) का नाम विशेष रूप से 2002 के गुजरात दंगे के संदर्भ में जाना जाता है, जब उन्होंने इस हिंसा के पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा करने और न्याय दिलाने के लिए ऐतिहासिक कानूनी लड़ाई लड़ी। उनके पति एहसान जाफ़री, जो उस समय कांग्रेस पार्टी के सांसद थे, अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसाइटी में दंगे के दौरान मारे गए थे। इस घटना के बाद ज़किया ने न्याय के लिए संघर्ष शुरू किया और एक दृढ़ नायक के रूप में सामने आईं।
अपनी वकालत से हुई उजागर
ज़किया जाफ़री (Zakia Jafri) की वकालत ने गुजरात दंगे में प्रशासन की भूमिका और दोषियों को बचाने के प्रयासों को उजागर किया। उन्होंने दंगों के बाद हिंसा की जांच में हो रही देरी और साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ का विरोध किया। उनका यह संघर्ष इतना मजबूत था कि उन्होंने अदालतों में कई मुकदमे दायर किए, जिनमें राज्य सरकार, पुलिस और अन्य आरोपितों को कठघरे में लाया।

मील का पत्थर बनकर साबित हुई ज़किया
उनका मुकदमा भारतीय न्याय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ। ज़किया जाफ़री का यह संघर्ष न केवल गुजरात दंगे के पीड़ितों के लिए न्याय दिलाने का था, बल्कि यह पूरे देश में मानवाधिकारों और न्याय के प्रति समर्पण का प्रतीक बन गया।

उनकी कार्यशैली और साहसिक नेतृत्व ने न केवल पीड़ितों को आशा दी, बल्कि यह न्यायपालिका के प्रति लोगों का विश्वास भी मजबूत किया।ज़किया जाफ़री (Zakia Jafri) का निधन एक ऐसी शख्सियत की क्षति है, जिन्होंने न्याय की राह में बहुत संघर्ष किया और पीड़ितों की आवाज़ बने। उनके परिवार, मित्र और समाज के लिए यह एक दुखद पल है। उनका योगदान न्यायपालिका में हमेशा याद रखा जाएगा।

