Nathuram Godse: हर साल 2 अक्टूबर को गांधी जयंती मनाई जाती है ये दिन महात्मा गांधी के संघर्ष, बलिदान और अहिंसा के संदेश को याद करने का अवसर होता है। जिन्होंने देश को स्वतंत्रता दिलाने में अहम भूमिका निभाई। बता दें कि 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने गांधी जी की हत्या कर दी थी। यह घटना भारतीय इतिहास की एक दुखद और महत्वपूर्ण घटना के रूप में दर्ज है। ऐसे में हम आपको अपने इस लेख द्वारा गोडसे के बारे में विस्तार से जानकारी दे रहे हैं जिन्होंने बापू को गोली मारी थी।
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नाथूराम गोडसे कौन थे?

नाथूराम गोडसे का जन्म 19 मई 1910 को ब्रिटिश भारत के बारामती में हुआ था। वे एक कट्टर हिंदू राष्ट्रवादी थे, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े थे। बाद में वे हिंदू महासभा के सदस्य भी बने। गोडसे ने हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा को फैलाने के लिए अखबार ‘अग्रणी’ के संपादक के रूप में भी काम किया। उनकी विचारधारा में हिंदू हितों की रक्षा प्रमुख थी और वे गांधीजी की नीतियों के कट्टर विरोधी थे।
गोडसे ने क्यों की महात्मा गांधी की हत्या?
नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या को लेकर कभी भी पश्चाताप या माफी नहीं मांगी। उन्होंने अपनी हत्या को देशभक्ति की एक कड़ी ठहराया। उनका मानना था कि गांधीजी की नीतियां मुसलमानों के पक्ष में थीं, जो हिंदुओं के हितों के खिलाफ थीं। विभाजन के बाद भारत में हुए सांप्रदायिक दंगों और अत्याचारों के लिए भी गोडसे ने गांधीजी को जिम्मेदार माना।
उनकी सबसे बड़ी नाराजगी इस बात को लेकर थी कि भारतीय सरकार पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता देने वाला था, जिसे कश्मीर विवाद के कारण रोका गया था। गांधीजी ने इस राशि के भुगतान को सुनिश्चित करने के लिए भूख हड़ताल की। गोडसे ने इसे भारत के खिलाफ कदम माना और समझा कि गांधीजी के कारण देश का नुकसान हो रहा है। इसलिए उन्होंने गांधीजी को खत्म करना आवश्यक समझा ताकि भारत का भविष्य सुरक्षित रहे।
महात्मा गांधी की हत्या कैसे हुई?
30 जनवरी 1948 को शाम करीब 5 बजे महात्मा गांधी दिल्ली के बिड़ला हाउस में प्रार्थना सभा में जा रहे थे। जैसे ही वे सभा स्थल के पास पहुंचे, नाथूराम गोडसे ने भीड़ में से निकल कर उनके पास जाकर तीन गोलियां चलाईं। गांधीजी जमीन पर गिर गए और अस्पताल ले जाने के बाद उनकी मृत्यु हो गई। इस घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया।
गोडसे को हुई सजा

महात्मा गांधी की हत्या के तुरंत बाद नाथूराम गोडसे को गिरफ्तार कर लिया गया। दिल्ली के लाल किले में गोडसे के खिलाफ मुकदमा चला। नवंबर 1949 में अदालत ने उन्हें और उनके साथी नारायण आप्टे को फांसी की सजा सुनाई। 15 नवंबर 1949 को दोनों को फांसी दी गई।
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